पॉलीहाऊस में खीरा की खेती

पॉलीहाऊस में खीरा की खेती करने का प्रचलन देश में पिछले कईं वर्षों से बढता जा रहा है, पॉलीहाउस में खीरा की खेती करने से किसानों की आमदनी भी बढ़ी है, हांलाकि पॉलीहाउस लगाने का शुरूआती खर्चा अधिक होता है लेकिन अलग अलग राज्यों की सरकार किसानों को इसमे 50 से 75% तक की सब्सिडी दे रही है,

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वैसे तो पॉलीहाउस में कई तरह की सब्जियां, कई तरह के फूल और स्ट्रॉबेरी जैसे फल भी उगाए जाते हैं लेकिन किसान पॉलीहाउस में सबसे ज्यादा खीरे की खेती करना पसंद करते हैं, क्योंकि पहला कारण तो यह है कि इसकी मांग बहुत होती है, दूसरा कारण इसे सालभर उगाया जा सकता है, तीसरा कारण पॉलीहाउस में उगाया गया खीरा खुले खेत में उगने वाले खीरा की तुलना में आकार में बड़ा और बेहतर क्वालिटी वाला होता है, जिससे बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है।

पॉलीहाऊस में खीरा की खेती

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पॉलीहाउस में खीरा की खेती के लिए उन्नत किस्में

पॉलीहाउस में खीरा की खेती के लिए कईं उन्नत किस्में है, लेकिन भारतीय किसान की पूंजी और समय को ध्यान में रखते हुए हम केवल यहां पार्थेनोकार्पिक किस्में का चयन करने की ही सलाह देंगे, क्योंकि इनमें परागण की आवश्यकता नहीं होती है।

Shanty F1 – पाउडरी मिल्ड्यू और वायरस रोधी   

Multistar F1 – गर्मी और बरसात दोनों मौसम के लिए उपयुक्त

Kian F1 – गर्मी में भी अच्छा उत्पादन

Hilton F1 – मजबूत पौधा और पॉलीहाउस में अत्यधिक सफल

यदि आप चाहते हैं कि मैं हाथ से, ब्रश से, मधुमक्खियों से या कम्पन्न विधि से कृत्रिम परागण करा सकता हूँ , तो ये नॉन पार्थेनोकार्पिक किस्में है।

pusa uday

kaith

indo green

Swarna ageti

Himanshi F1

खीरा की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियां

मिट्टी का चुनाव

पॉलीहाऊस में खीरा की खेती के लिए लगभग सभी प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है लेकिन दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी को सर्वोत्तम माना जाता है।

भारत में काली मिट्टी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक,मध्य-प्रदेश और राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में पाई जाती है। वहां भी खीरा की खेती की जा सकती है।

मिट्टी का चुनाव करते समय यह ध्यान रखें कि उसमें उचित जलनिकास की व्यवस्था होनी चाहिए।

मिट्टी का ph मान

खीरा की खेती के लिए मिट्टी का ph मान 6 से 7.5 के बीच में होना चाहिए।

उपयुक्त तापमान

खीरा की अच्छी पैदावार लेने के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है।

पॉलीहाउस में खीरा की खेती के लिए खेत की तैयारी

खेत की जुताई करना और खाद डालना

बुआई से 3 से 4 सप्ताह पहले खेत में 2 से 3 बार गहरी जुताई करें और 8 से 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद और लगभग 200 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से नीम की खली डालकर खेत में मिला दे।

रासायनिक उर्वरक में DAP 50 किलो और पोटाश (MOP) 25 किलो आखिरी जुताई से पहले डाले। खरपतवारों को निकाले और पत्थरों को भी हटा दे, फिर मिट्टी को भुरभुरा करे।

बेड बनाना (Raised Beds या उठी हुई क्यारियाँ)

पॉलीहाऊस में खीरा की खेती करने के लिए बेड बनाना बहुत आवश्यक होता है जिससे उचित जल निकास होता है और ऊँचे बेड के कारण मिट्टी में वायु संचार अच्छा होता है जिससे जड़ों को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है और पौधे तेजी से बढते है। बेड बनाने के लिए कुछ जरुरी बातों का ध्यान रखें, जैसे :-

बेड की ऊँचाई – लगभग 30 cm होनी चाहिए।

बेड की चौड़ाई – 90 से 120 cm होनी चाहिए।

पंक्तियों के बीच की दुरी – लगभग 1 से 1.5 मीटर होनी चाहिए।

बेड की लम्बाई – खेत के आकार के अनुसार होनी चाहिए।

बेड को उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बनायें जिससे पौधों को समान रूप से धूप मिल सके।

ड्रिप सिस्टम लगाना

ड्रिप सिंचाई पाइप को बेड के बीच में लगाएं जिससे पानी और खाद पौधों की जड़ो तक आसानी से पहुँच जाए।

मल्चिंग करना

बेड की सतह पर 25 से 30 माइक्रोन की काली पॉलीथिन मल्चिंग शीट बिछाएं।

मल्चिंग करने से खरपतवार कम होते है, खेत में नमी बनी रहती है जिससे पानी की बचत होती है और खेत का तापमान कंट्रोल रहता है।

खीरा के बीजो की बुआई

बुआई का समय

गर्मी की फसल लेने के लिए बुआई – फरवरी से मार्च के बीच

बरसात की फसल लेने के लिए बुआई – जून से जुलाई के बीच

बीज दर

पॉलीहाउस में खीरा की खेती के लिए बीज दर मुख्य रूप से खीरा की किस्म, पौधे से पौधे की दूरी और खीरा के बीज की अंकुरण दर पर निर्भर करती है फिर भी सामान्यतः 250 से 300 ग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।

बीजों की दूरी

क़तार से क़तार की दूरी – 4 से 5 फीट (120 से 150 सेमी) 

पौधे से पौधे की दूरी – 1.5 से 2 फीट (45 से 60 सेमी) 

बीज उपचार 

बीजों की बुवाई करने से पहले उनका उपचार करना बहुत ज़रूरी है, जिससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है और बीमारियों से बचाव होता है 

– बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए उन्हें गुनगुने पानी में 8 से 10 घंटे तक भिगोकर बोएं। 

– बीजों को फफूंदजनित रोगों से बचाने के लिए Carbendazim 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें।

बीजों की बुआई कैसे करें

 खीरा के बीजों की बुवाई 2 तरह से की जाती है: 

 सीधी बुआई करना 

– प्रत्येक क्यारी/क़तार में 45 से 60 सेमी की दूरी पर 1.5 से 2.5 सेमी की गहराई में 1 से 2 बीजों को गड्ढा करके डालें। 

– बीजों को मिट्टी से हल्का ढक दें और तुरंत सिंचाई करें। 

– 3 से 5 दिनों में अंकुरण होने के बाद जिन गड्ढों में 1 से 2 बीज डाले थे, उनमें से जो कमजोर पौधे दिख रहे हैं, उन्हें निकाल दें। 

 नर्सरी में बुआई करना

– यदि आप खीरे की पार्थेनोकार्पिक किस्में उगा रहे हैं, तो नर्सरी में बुवाई करना बेहतर होगा।

नर्सरी में बुआई करने से बीज कम बर्बाद होते हैं, पौधे स्वस्थ और शीघ्र तैयार होते हैं।

नर्सरी में बुआई करने के लिए प्रो ट्रे का उपयोग करना होता है, प्रो ट्रे में छेद होना जरूरी है ताकि उनमें से अच्छी जल निकासी हो पाए।

प्रो ट्रे में भरने के लिए मिश्रण:

प्रो ट्रे में भरने के लिए मिश्रण मिट्टी से हल्का और पोषक तत्वों से भरपूर होना चाहिए।

मिश्रण में 50% कोकोपीट का उपयोग करें जो नमी बनाए रखने में मदद करता है, 25% वर्मीक्यूलाइट का उपयोग करें जो जड़ों के लिए हवा और नमी बनाए रखता है, 25% जैविक खाद या वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करें जो पौधे को पोषण देता है।

बुआई की विधि:

प्रो ट्रे में यह मिश्रण भरें और प्रत्येक सेल (गड्ढे) में 1 बीज डालें।

ध्यान रहे प्रो ट्रे के गड्ढे की साइज इतनी होनी चाहिए कि बीज को 1.5 से 2 सेमी की गहराई में रख सके।

अब हल्की सिंचाई करें ताकि मिश्रण गीला रहे लेकिन उसमें जल भराव नहीं हो पाए।

प्रो ट्रे को किसी छायादार जगह पर या पॉलीहाउस में ही रखें।

स्प्रे द्वारा हल्की सिंचाई करते रहें लेकिन मिट्टी ज्यादा गीली न होने दें।

3 से 5 दिनों में बीज अंकुरित हो जाते हैं, 10 दिनों के बाद NPK 19:19:19  1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

अब पौधों की ताकत बढ़ाने के लिए उन्हें धीरे-धीरे प्राकृतिक रोशनी में लाएं।

लगभग 15 दिनों के बाद जब पौधे में 3 से 4 पत्तियां आ जाएं तब ये रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।

पौधरोपण से 1 दिन पहले सिंचाई रोक दें जिससे जड़े मजबूत रहें। पौधरोपण का सही समय शाम का समय होता है, रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।

बुआई के बाद समय समय पर उर्वरक डालना

खीरे की फसल में बुआई के बाद समय-समय पर उर्वरक डालना बहुत जरूरी है ताकि पौधे स्वस्थ रहें। यहाँ खीरे के पौधे की वृद्धि के विभिन्न चरणों के लिए उर्वरक डालने की जानकारी दी गई है:

पौधे की वृद्धि के समय

बुवाई के लगभग 15 दिन बाद पत्तियों की वृद्धि के लिए 25 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।

साथ ही, ड्रिप या स्प्रे के माध्यम से Suspension Grade NPK 19:19:19  5 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।

फूल आने पर

NPK 12:32:16 25 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।

Boron 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फल बनने की अवस्था में

15 किलोग्राम पोटाश (MOP) और 10 किलोग्राम कैल्शियम नाइट्रेट प्रति एकड़ की दर से डालें

सिंचाई 

खीरा के पौधों की जड़ों तक पर्याप्त नमी बनी रहे, इस बात का ध्यान रखते हुए सिंचाई करें।

खीरा के पौधों की देखभाल करना

खीरा के पौधों को सहारा देना

खीरा एक बेल वाली सब्जी है इसलिए यदि इसे Trellis (जाली या तार) से सहारा न दिया जाए तो फल मिट्टी की सतह के संपर्क में होने के कारण सड़ जाते हैं जिससे खीरा की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इसलिए Trellis की मदद से पौधों को सहारा दें जिससे हवा का प्रवाह अच्छा होने के कारण पुरानी पत्तियां जल्दी सूखेंगी और फंगल इन्फेक्शन कम होगा।

कटाई छंटाई करना

खीरा के पौधे में यदि बहुत अधिक पत्तियां और अनावश्यक शाखाएं हो तो उनमें से कुछ शाखाओं की छंटाई करें जिससे पौधे को पर्याप्त धूप मिल सके और पोषक तत्व सिर्फ पौधे के फूल और फलों के विकास में लगे। जमीन की सतह के संपर्क में आने वाली पुरानी पत्तियों को काट दें जिससे नमी और मिट्टी के कारण पौधे को कोई बीमारी न फैले।

कमजोर फलों को निकालना

खीरे के पौधों से समय समय पर कमजोर फलों को निकालना (थिनिंग करना) बहुत जरूरी होता है जिससे पौधे की ऊर्जा का सही उपयोग हो पाता है, रोग व कीटों का खतरा कम होता है क्योंकि कमजोर फल जल्दी सड़ सकते हैं जो रोग व कीटों को आकर्षित कर सकते हैं, स्वस्थ फलों का उत्पादन होता है जिससे उपज में वृद्धि होती है और बेहतर गुणवत्ता वाले खीरे का बाजार में अच्छा दाम भी मिलता है। यदि कोई फल बहुत छोटा, टेढ़ा मेढ़ा या विकृत दिख रहा हो, वह बढ़ नहीं रहा हो या पीला पड़ रहा हो, या किसी कीट व रोग से ग्रसित हो तो उसे निकाल दें।

खीरा में लगने वाले प्रमुख रोग और कीट

प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण

 पाउडरी मिल्ड्यू

– पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसा दाग बन जाता है, जिससे पत्तियां मुरझाने लगती है और फलों का विकास रुक जाता है।

इसके नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25% EC या सल्फर 80% WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें, आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अंतराल में 2 से 3 बार छिड़काव को दोहराएं।

डाउनी मिल्ड्यू

– पत्तियों पर पीले और भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है और उनकी निचली सतह बैंगनी या भूरे रंग की दिखाई देती है।

इसके नियंत्रण के लिए मेटलएक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

 एन्थ्रेक्नोज

– पत्तियों पर गोल गोल भूरे धब्बे पड़ जाते है जो धीरे धीरे बढ़ते चले जाते है। साथ ही खीरे पर भी काले धब्बे पड़ जाते है।

इसके नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या कार्बेन्डाजिम 50% WP का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

 विल्ट रोग

– यह रोग बैक्टीरिया के द्वारा होता है। इसमें पत्तियां अकारण ही मुरझाने लगती है और पौधे की जड़ों का रंग काला होने लगता है।

इसके नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.01% या 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें।

खीरा मोजेक वायरस

– यह रोग मोजेक वायरस से होता है जो एफिड द्वारा फैलता है, इसमें पत्तियों पर हरे पीले धब्बे पड़ जाते है और उनमें सिकुड़न आ जाती है , खीरे के पौधे की वृद्धि रुक जाती है और खीरे टेढ़े मेढ़े हो जाते है।

इसके नियंत्रण के लिए एफिड कीट को नियंत्रित करें।

रोग ग्रस्त पौधों को तुरंत उखाड़ दें।

यह ध्यान रखें कि रोगनाशक और कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करते समय लेबल पर दिए गए निर्देशों का पालन करें।

प्रमुख कीट और उनका नियंत्रण

 रेड पम्पकिन बीटल

– यह कीट खीरे के पौधे की शुरुआती अवस्था में पत्तियों को खाता है और यह खीरा में छेद करके उसे खत्म कर देता है।

इसके नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफॉस 20% EC  2ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे या कार्बारिल 50% WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।

 एफिड्स / माहू

– यह कीट पत्तियों का रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देता है।

इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL का 1 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे या नीम का तेल 5 ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे।

 फल मक्खी

– ये खीरा के अंदर अंडे देती है , अंडो में से डिम्भक निकलते है जो खीरा के गुदे को खाकर उसे सड़ा देते है, पके हुए खीरा में इसका प्रकोप अधिक देखने को मिलता है।

इसके नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50% EC  2ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे, आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के बाद छिड़काव को दोहराएं।

  लाल मकड़ी (Spider mite)

– यह पत्तियों का रस चूसती है जिससे पत्तियों पर छोटी छोटी सफेद या भूरी बिंदिया दिखने लगती है।

इसके नियंत्रण के लिए Abamectin 1.8% EC  0.5ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे या सल्फर 80% WP 2ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।

यह ध्यान रखें कि कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करते समय लेबल पर दिए गए निर्देशों का पालन करें।

खीरा में देहिक विकार

पॉलीहाउस में खीरा की खेती करते समय कई प्रकार के देहिक विकार हो सकते है जो पोषक तत्वों का संतुलन न होने के कारण , उचित सिंचाई न होने पर और पर्यावरणीय स्थितियों के कारण होते है ये कुछ प्रमुख देहिक विकार है।

 खीरे का टेढ़ा मेढ़ा होना

रोकथाम के लिए संतुलित सिंचाई करे और कैल्शियम व बोरॉन की पूर्ति करे और उचित तापमान बनाए रखे।

खीरा का सफेद या पीला पड़ना

रोकथाम के लिए उचित मात्रा में प्रकाश सुनिश्चित करे और मैग्नीशियम व आयरन की पूर्ति करे और नाइट्रोजन की अधिकता ना होने दे।

 खीरा का सिरा पतला होना

रोकथाम के लिए निरंतर नमी बनाए रखे और कैल्शियम युक्त उर्वरकों का छिड़काव करे।

 खीरा का फटना

रोकथाम के लिए पॉलीहाउस में तापमान और नमी को नियंत्रित रखे।

 अत्यधिक तापमान के कारण खीरा का आकार छोटा और नुकीला होना

रोकथाम के लिए पोटेशियम की पूर्ति करे और तापमान को नियंत्रित करने के उपाय अपनाएं।

 खीरे के पौधों की पत्तियों का जलना

रोकथाम के लिए बोरॉन और कैल्शियम का छिड़काव करे और यदि सिंचाई जल में अत्यधिक लवणियता हो तो उसे कम करे।

 खीरा का खोखला होना

रोकथाम के लिए कैल्शियम और बोरॉन की पूर्ति करे और नमी बनाए रखे।

खीरा की तुड़ाई

यदि खीरे की सीधी बुवाई की जाए तो लगभग 40 से 50 दिनों के बाद खीरे की तुड़ाई शुरू हो जाती है और यदि नर्सरी में तैयार पौधों का रोपण किया जाए तो लगभग 30 से 40 दिनों के बाद तुड़ाई शुरू हो जाती है।

जब खीरे का रंग गहरा हरा हो जाए और उसकी लंबाई 15 से 25 cm तक हो जाए  तब सुबह 6 से 9 बजे के बीच में या शाम को 5 से 7 बजे के बीच में खीरे की तुड़ाई करे जिससे वे ताजे और कुरकुरे बने रहे , दोपहर में खीरा की तुड़ाई करने से वह जल्दी मुरझा सकता है।

हर 2 – 3 दिन में एक बार तुड़ाई करे जिससे नए खीरे जल्दी विकसित हो सके।

खीरा की उपज

1 एकड़ के पॉलीहाउस में खीरे की एक फसल का उत्पादन लगभग 25 से 40 टन तक हो जाता है।

 निष्कर्ष

पॉलीहाउस में खीरा की खेती करना भारतीय किसानों के लिए एक अधिक मुनाफा देने वाला विकल्प है, क्योंकि किसान यदि खुले खेत में परंपरागत तरीके से खीरा की खेती करने की तुलना में पॉलीहाउस में खीरा की खेती करे तो उसे अधिक उत्पादन मिलता है और तुलनात्मक रूप से बेहतर गुणवत्ता वाला खीरा मिलता है खुले खेत में खीरा की खेती करने की तुलना में इसमें कम पानी और कम कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है जिससे लागत में कमी आती है और किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1 एकड़ पॉलीहाउस लगाने में कितना खर्च आता है?

भारत में 1 एकड़ पॉलीहाउस लगाने के लिए लगभग 30 से 45 लाख का खर्च आता है लेकिन भारत सरकार और विभिन्न राज्यों की सरकारें किसानों को पॉलीहाउस लगाने के लिए 50 से 75% तक की सब्सिडी देती है, जो राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) और राज्य बागवानी विभागों के तहत आती है

बाजार में खीरा का रेट क्या है?

खीरा का रेट स्थानीय बाजार में 15 से 40 रुपये प्रति किलो (अनुमानित)
थोक मंडी में खीरा का रेट ऑफ सीजन में 8 से 15 रुपये प्रति किलो (अनुमानित) और पीक सीजन में 3 से 10 रुपये प्रति किलो (अनुमानित)
ऑर्गेनिक खीरा का रेट 30 से 60 रुपये प्रति किलो (अनुमानित)

खीरे की प्रति पौधा कितनी उपज होती है?

सामान्यतः एक खीरा का पौधा 2.5 से 5 किलो तक उपज दे सकता है लेकिन यदि खीरा वैज्ञानिक तरीके से उगाया जाए (जैसे कि Trellis system, Drip irrigation और Hybrid varieties का उपयोग करके) तो उपज 5 से 10 किलो प्रति पौधा तक भी हो सकती है।

भारत में प्रति एकड़ खीरे के कितने पौधे होते हैं?

एक एकड़ के पॉलीहाउस में लगभग 4,300 से 7,200 खीरा के पौधे लगाए जा सकते हैं जो “पौधे से पौधे की दूरी और कतार से कतार की दूरी कितनी रखी गई है?” इस बात पर निर्भर करेगा।

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